भगवान ही सृष्टि के आदिकारण है : भार्गव मुनीश
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बलिया । नगर के मालगोदाम एलआईसी रोड स्थित विनीत लॉज के सामने स्थित नवनिर्मित भवन में आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा प्रेमयज्ञ के कथा के चतुर्थ दिन शुक्रवार को कथावाचक परम पूज्य भार्गव मुनीश ने कपिल अवतार, सृष्टि की रचना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान ही इस सृष्टि के आदि कारण है। वे सर्वेश्वर अपने संकल्प से ही इस जगत का विस्तार करते हैं और फिर वे ही सर्वशक्तिमान इसका पालन भी करते हैं। जीवो के कल्याण के लिए वे दयामय विभिन्न रूप धारण करके जगत में आते हैं। वे ही परम प्रभु मनु एवं प्रजापति रूपसे जगतके प्राणियों का पालन करते हैं। वे उदारचरित ही ऋषि एवं योगेश्वर रूप से इस भवसागर से पार होने का मार्ग बतलाते हैं और उस पर स्वयं चलकर आदर्श रखते हैं। मनुष्य जीवन आदमी को बार-बार नहीं मिलता है इसलिए इस कलयुग में दया धर्म भगवान के स्मरण से ही सारी योनियों को पार करता है। मनुष्य जीवन का महत्व समझते हुए भगवान की भक्ति में अधिक से अधिक समय देना चाहिए। उन्होंने बताया कि, भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रुप में लिया। इन्हें विष्णु के 24 अवतारों में से एक पांचवां अवतार माना जाता है। इनको अग्नि का अवतार और ब्रह्मा का मानस पुत्र भी कहा गया है।
तत्वज्ञान का प्राणियों को उपदेश करने के लिए सृष्टि के प्रारंभिक पद्मकल्प के स्वयंभूव मन्वंतर में ही प्रजापति कर्दम के यहां उनकी पत्नी देवहूती से भगवान ने कपिल रूप में अवतार ग्रहण किया। अपनी माता देवहुती को ही भगवान ने सर्वप्रथम तत्व ज्ञान एवं भक्ति का उपदेश किया। भगवान कपिल के क्रोध से ही राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे। भगवान कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं। कहा जाता है, प्रत्येक कल्प के आदि में कपिल जन्म लेते हैं।
उन्होंने आगे बताया कि जीवन में चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति के लिए विवाह संस्कार होता है। जहां दो आत्माएं एक-दूसरे के लिए अपना समर्पण करती हैं। शिव परम तत्व का वाचन है। ब्रह्मा, विष्णु रुद्र शिव के ही तीन रूप है।
इस दौरान शिव पार्वती की मनमोहक झांकी सजाई गई जिसने सभी का मन मोह लिया। वहीं कथावाचक ने सृष्टि वर्णन, सती प्रसंग और शिव-पार्वती विवाह का बहुत ही सुंदर ढंग से वर्णन किया। उन्होंने बताया जब पिता दक्ष के यहां सती ने भगवान शिव का अपमान देखा तो क्रोधित होकर अग्नि में अपनी आहूति दे दी। भगवान शिव को जब जानकारी हुई तो क्रोध में तांडव कर यज्ञ को नष्ट कर दिया। सती ने मरते समय शिव से यह वर मांगा कि हर जन्म में आप ही मेरे पति हों। इसी कारण सती ने हिमाचल के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वतीजी ने शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या आरंभ की लेकिन शिव को सांसारिक बंधनों में कदापि रूचि नहीं थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया। कथा के दौरान शिव-पार्वती विवाह के प्रसंग को सुन सभी भक्त भाव विभोर हो गए। आज की कथा के बाद आरती हुई तथा प्रसाद का वितरण हुआ।
आज के कथा के यजमान प्रतिष्ठित व्यवसायी व आदर्श प्रेस के स्वामी श्रीआनन्द गुप्त जी थे। कथा के बाद कल होने वाले कथा के बारे में श्री सोनू पुजारी जी द्वारा संक्षिप्त विवेचन किया गया।
इस अवसर पर ईश्वरनश्री, परमेश्वरनश्री, राम गोपाल अग्रवाल, अनिल सिंह, दीपक अग्रवाल, डॉ सन्तोष तिवारी, मंगलदेव चौबे, सत्यव्रत सिंह, राधारमण अग्रवाल, सागर सिंह राहुल, राजेश अग्रवाल, राम बदन चौबे,ओम प्रकाश चौबे, अनुज सरावगी, शम्भूनाथ केसरी आदि के साथ सैकड़ों मातृशक्तियाँ व
श्रद्धालुजन उपस्थित रहे।
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