पौराणिक मान्यताओं के अनुसार साठ हजार वर्षों तक काशी में रहने का जो फल मिलता है, वही फल विमुक्त भृगु क्षेत्र में दर्दर मुनि के संगम स्थल पर स्नान करने से मिलता है। भारत वर्ष में कुल चार क्षेत्र पवित्र व प्रसिद्ध माने गए हैं। इनमें वाराह क्षेत्र, हरिहर क्षेत्र, कुरुक्षेत्र व भृगु क्षेत्र है। किंतु भृगु क्षेत्र का अपना कुछ विशेष स्थान है। ब्रह्माजी के दस मानस पुत्रों में महर्षि भृगुजी का भी एक विशेष महत्व व स्थान है। मरीचि, अत्रि, पुत्रह, पुलस्थ, अंगिरा, क्रतु, वशिष्ठ, नारद, दक्ष व महर्षि भृगु।भृगु की पावन तपोस्थली पर कार्तिक पूर्णिमा स्नान व उनके शिष्य दर्दर मुनि के नाम पर लगने वाला ददरी मेला प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। यह एशिया का दूसरा सबसे बड़ा मेला है। शास्त्रों में गंगा की महिमा अपरंपार बताई गई है। शब्द कल्पद्रुम में बताया गया है कि गंगा पापों के हरने वाली, पतितों को तारने वाली, उग्र ग्रहों को शांत करने वाली, यमराज के भय को दूर करने वाली, स्वर्ग जाने के लिए सोपान स्वरूपा है।
महर्षि भृगु की तपोस्थली व महावीर घाट गंगा-तमसा के संगम तट पर मंगलवार को स्नान करने के लिए आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। महर्षि भृगु की पावन धरती पर महावीर घाट संगम तट के अलावा विभिन्न घाटों पर दस लाख से अधिक लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई। इस दौरान महिलाओं की काफी भीड़ रही। स्नान के बाद आस्थावानों ने महर्षि भृगु, दर्दर मुनि व बाबा बालेश्वर नाथ के मंदिर में जाकर मत्था टेका।
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