सुरहाताल में प्रवासी पंक्षियों का आगमन से गुलजार सुरहाताल
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बलिया: पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना यूँ ही नहीं बनाई थी। सुरहा ताल उनका ड्रीम प्रोजेक्ट था। यहां की वादियों में शरद ऋतु में गुलाबी ठंड प्रारम्भ होते ही ऐतिहातिक सुरहाताल में प्रवासी पंक्षियों का आवागमन शुरू होने लगता है। आलम यह है कि मेहमान पंक्षियों के आने से पूरा सुरहाताल गुलजार रहता है। विदेशी अप्रवासीय के अलावा स्थानीय प्रवासी पंक्षियां भी सुरहाताल में मौजूद रहती हैं। कई देशों से आने वाली पंक्षियों को साइबेरियन के नाम से जाना पहचाना जाता है। जो हर वर्ष यहां आकर प्रवास करती है। साथ ही सुरहाताल में आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का खासा केन्द्र बनी रहती है। उधर, सुरहाताल में साइबेरियन सहित अन्य पक्षियों का शिकार किया जाना भी आरंभ हो गया है। वन विभाग की ओर से कार्रवाई नहीं होने से शिकारी पक्षियों को ऊंचे दामों पर बेचते हैं। प्रवासी पंक्षियों के आने से हर साल बसंतपुर के आसपास निवास करने वाले शिकारियों की चांदी कटने लगती हैं। हालांकि इस शिकार करने पर रोक लग जाय तो वह दिन दूर नहीं जब दूर से लोग इन्हें सिर्फ देखने के लिए आएंगे।

ये प्रशासनिक भवन का शेड सुरहा में सारस के उतरने के रुप करता है प्रदर्शित
सर्दी शुरू होते ही परदेश से हजारों की संख्या में विदेशी पक्षियों के लगभग 10 किमी क्षेत्रफल में फैले सुरहाताल में आने का क्रम शुरू हो जाता है। सर्दी के मौसम में सुरहाताल की वादियां अत्यंत सुंदर हो जाती हैं। इन दिनों बसंतपुर स्थित जयप्रकाश नारायण पक्षी विहार क्षेत्र साइबेरियन पक्षियों से गुलजार हो गया है। आने वाले सैलानी परिंदे करीब एक-डेढ़ दशक पहले यहां आने के बाद पूरी तरह महफूज रहते थे। ताल के किनारे स्थित गांवों के बड़े व बूढ़े इन विदेशी महमानों को पानी में अटखेलियां करते देख खुश होते थे। ऐसे खुशनुमा माहौल के बीच शिकारी माहौल खराब कर रहे हैं। वे रोज काफी संख्या में पक्षियों का शिकार कर रहे हैं।

लोग बताते हैं कि अगर समय रहते इसे नहीं रोका गया तो सुरहाताल वीरान हो जाएगा। बताया जाता है कि शिकारी तितलियों को पकड़ मार देते हैं। उनके अंदर कीटनाशक भरकर ताल के पानी में जगह-जगह रखते हैं। इसके बाद कुछ दूरी पर नाव में ही छिप जाते हैं। तितलियों को खाते ही पक्षी अचेत हो जाते हैं। इतने में शिकारी उन्हें पकड़ कर नमक का घोल पिला देते हैं। इससे पक्षी ठीक हो जाते हैं। हालांकि कभी-कभी पक्षियों की मौत भी हो जाती है।

हजारों मील की दूरी तय कर सुरहा में पहुंचते हैं सैलानी पंछी
सर्दी के दिनों में सुरहा ताल सुंदर वादियों की तरह हो जाती है, जो खासकर साइबेरियन पक्षियों को काफी भाता है। यही कारण है पिछले कई दशकों से हजारों मील की दूरी तय कर प्रवासी पक्षी पहुंच रहे हैं। वहीं, विदेशी मेहमानों के पहुंचते ही शिकारी भी सक्रिय हो जाते हैं लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है।

ठंडी साइबेरिया और आस्ट्रेलिया से आते हैं पक्षी
सुरहाताल में खासतौर से उच्च अक्षांशों के शीत क्षेत्रों अर्थात साईबेरियाई क्षेत्रों से पक्षी आते हैं। ये अति सुंदर, रंग-बिरंगे एवं मनोहारी होते हैं। ये पक्षी विभिन्न तरह से कलरव एवं करतब करते हुए आकर्षक लगते हैं। इन पक्षियों में साईबेरियन समेत तमाम देशों से आने वाले लालसर,शिवहंस,डुबडूबी,जलकौआ, सिलेटी अंजन, लाल अंजन, गोई लाल गोई, रंगीन जांघिल, काला जांघिल, सफेद बाज, काला बाज, सवन, सुर्खाव, कपासी चील, बड़ा गरुण, नील सर, सारस, ताल मखानी, पीली टिटिहरी, हुदहुद, धनेश, भूरी मैना,जैसे पंक्षी पर्यटकों को खूब आकर्षित करते हैं।वास्तव में ये पक्षी वातावरण के अनुकूल प्रवास करते हैं।

लोकल पंछी भी बढ़ाते हैं खूबसूरती
इन पंक्षियों में दयाल, बबूना, कपासी चील,अबलकी, मैना, हरा पतंग, सामान्य भुजंगा, नीलकण्ठ, बड़ा खोटरू,सिपाही बुलबुल,पवई, पीलक,चित्ति मुनिया, ठठेरा बसन्धा,कोयल,जंगली गौगाई चरखी, सिलेटी धनेश, घरेलू गौरैया, लाल तरुपिक, हुदहुद, पीला खंजन, सफेद खंजन, टिकिया,कैमा आदि जैसे स्थानीय पंक्षी पाए जाते हैं।
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