स्वामी जी की बुद्धिमानी और हाजिर जवाबी की पूरी दुनिया थी कायल
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भारतीय संस्कार, संस्कृति को भारत के गुलामी काल में भी शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में परचम लहराया
बलिया: युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जी की जयंती राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बलिया नगर द्वारा राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में गुरुवार 12 जनवरी 2023 को अपरान्ह 3 बजे भृगुजी मंदिर के प्रांगण में बड़े उत्साह के साथ स्वयंसेवकों द्वारा पूर्ण गणवेश में एकत्रीकरण कर मनाया गया। इस अवसर पर स्वामीजी के कृतित्व और व्यक्तित्व को याद किया गया। ‘नर सेवा नारायण सेवा’ का मन्त्र देने वाले स्वामी विवेकानंद जी की आज 160वीं जयंती है।
सर्वप्रथम मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बलिया के जिला बैद्धिक शिक्षण प्रमुख डॉ. राजेन्द्र पाण्डेय, सह जिला संघचालक डॉ. विनोद जी, मा. सह नगर संघचालक श्री परमेश्वरनश्री जी द्वारा भारत माता, पूज्य स्वामी विवेकानन्द, पूज्य डॉक्टर केशवराम बलिराम हेडगेवार व पूज्य श्रीगुरुजी माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर के चित्र पर पुष्पार्चन कर व दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया।अपने सम्बोधन में मुख्य वक्ता डॉ. राजेन्द्र पाण्डेय जी ने स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि युग प्रवर्तक स्वामी जी ने भारतीय संस्कार, संस्कृति को भारत के गुलामी काल में भी शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में अपने प्रखर व ओजस्वी वचनों से भारत की पहचान स्थापित की थी। हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जयंती मनाई जाती है। इस दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है स्वामी विवेकानंद बहुत कम उम्र में ही संन्यासी बन गए थे। पश्चिमी देशों को योग-वेदांत की शिक्षा से अवगत कराने का श्रेय स्वामी जी को ही जाता है। स्वामी विवेकानंद ने 19वीं शताब्दी के अंत में विश्व मंच पर हिंदू धर्म को एक मजबूत पहचान दिलाई थी। बहुत कम उम्र में ही उनका झुकाव अध्यात्म की तरफ हो गया था। उन्होंने आगे बताया कि स्वामी विवेकानन्द जी ने रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की नींव रखी थी। स्वामी जी की बुद्धिमानी और हाजिर जवाबी की पूरी दुनिया कायल थी स्वामी विवेकानंद के विचार आज ही प्रेरणादायक हैं। स्वामी जी बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे। कहा जाता है कि मां के आध्यात्मिक प्रभाव और पिता के आधुनिक दृष्टिकोण के कारण ही स्वामी जी को जीवन अलग नजरिए से देखने का गुण मिला। आध्यात्म के प्रति उनका झुकाव बचपन से ही था और वह अक्सर साधु-संतों के प्रवचनों को सुना करते थे। नरेंद्रनाथ दत्त 25 साल की उम्र में घर-बार छोड़कर संन्यासी बन गए थे। संन्यास लेने के बाद इनका नाम नरेंद्र से विवेकानंद पड़ा।अमेरिका में एक बार हुई धर्म संसद की घटना के बारे में बोलते हुए मुख्य वक्ता ने बताया कि जब स्वामी विवेकानंद ने अमेरिकी लोगों को ‘भाइयों और बहनों’ कहकर अपना भाषण शुरू किया तो आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में 2 मिनट तक तालियां बजती रहीं। 11 सितंबर 1893 का वो दिन हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया। बालक नरेंद्र को विवेकानंद बनाने में उनके आध्यात्मिक गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है।उन्होंने उपस्थित स्वयंसेवकों से आह्वान करते हुए बताया कि स्वामी विवेकानंद को युवाओं का प्रेरणास्त्रोत कहा जाता है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा कहा था-‘ उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक तुम्हें तुम्हारे लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।’ हमें भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक नहीं रुकना चाहिए। चरैवेति चरैवेति यही तो मंत्र है अपना, यही तो मंत्र है अपना। यह ध्येय मंत्र हमें अपनाना चाहिए और तब तक नहीं रुकना चाहिए जब तक की लक्ष्य को प्राप्त नहीं हो जातीइस कार्यक्रम के दौरान अधिकतम उपस्थिति प्रतियोगिता के विजेता शाखा भृगु शाखा, केशव शाखा व बाल्मीकि शाखा को भारत माता का चित्र देकर सम्मानित के8या गया।अंत मे संघ प्रार्थना के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ। आशीर्वचन मा. सह नगर संघचालक श्री परमेश्वरनश्री जी द्वारा व आभार मा. सह जिला संघचालक डॉ. विनोद जी द्वारा किया गया।इस अवसर पर मा. नगर संघचालक श्री बृजमोहन जी, सह जिला कार्यवाह श्री अरुण मणि जी, नगर कार्यवाह ओम प्रकाश राय, नगर प्रचारक विशाल के साथ नगर, जिला व विभाग कार्यकारिणी के दायित्वधारी व विचार परिवार के कार्यकर्ता उपस्थित थे। इस कार्यक्रम के मुख्य शिक्षक नगर शारीरिक शिक्षण प्रमुख श्री चंद्रशेखर जी थे तथा प्रार्थना कृपानिधि पाण्डेय जी द्वारा कराई गईउपरोक्त जानकारी जिला प्रचार प्रमुख मारुति नन्दन द्वारा दी गयी।
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